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ग़ज़ल
अव्वल-ए-शब वो बज़्म की रौनक़ शम्अ' भी थी परवाना भी
रात के आख़िर होते होते ख़त्म था ये अफ़्साना भी
आरज़ू लखनवी
ग़ज़ल
किस लिए बुझने लगे अव्वल-ए-शब सारे चराग़
आँधियों ने भी अगरचे कोई साज़िश नहीं की
अंबरीन हसीब अंबर
ग़ज़ल
शब बीती चाँद भी डूब चला ज़ंजीर पड़ी दरवाज़े में
क्यूँ देर गए घर आए हो सजनी से करोगे बहाना क्या
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
इन को बेहिस जान न साक़ी अव्वल-ए-शब है बादा-नोश
रात ढले महसूस करेंगे शीशे की झंकार बहुत
रसा चुग़ताई
ग़ज़ल
निगाह-ए-नाज़ का कुश्ता हुआ जब अव्वल-ए-शब
मिरी नज़र में ये जादू-ए-सामरी क्या है
अल-हाज अल-हाफीज़
ग़ज़ल
मेरी क़िस्मत में फ़क़त दुर्द-ए-तह-ए-साग़र ही है
अव्वल-ए-शब जाम मेरी सम्त वो लाया नहीं
परवीन शाकिर
ग़ज़ल
क़िस्सा छेड़ा मेहर ओ वफ़ा का अव्वल-ए-शब उन आँखों ने
रात कटी और उम्र गुज़ारी फिर भी बात अधूरी थी
सलीम अहमद
ग़ज़ल
अव्वल-ए-शब की लोरी भी कब काम किसी के आती है
दिल वो बच्चा अपनी सदा पर कच्ची नींद से जागता है
अख़्तर होशियारपुरी
ग़ज़ल
जौन एलिया
ग़ज़ल
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
हम इस लम्बे-चौड़े घर में शब को तन्हा होते हैं
देख किसी दिन आ मिल हम से हम को तुझ से काम है चाँद
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
निशान-ए-ज़ख़्म पे निश्तर-ज़नी जो होने लगी
लहू में ज़ुल्मत-ए-शब उँगलियाँ भिगोने लगी