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ग़ज़ल
ख़्वाब-गाहों से अज़ान-ए-फ़ज्र टकराती रही
दिन चढ़े तक ख़ामुशी मिम्बर पे चिल्लाती रही
ज़हीर सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
अज़ान-ए-फ़ज्र के आहंग में महव-ए-सुख़न है
कोई मुझ से ख़ुदा के रंग में महव-ए-सुख़न है
शाैकत हाशमी
ग़ज़ल
क्या जाने कहाँ जाने की जल्दी थी दम-ए-फ़ज्र
सूरज से ज़रा पहले ही बिस्तर से उठा मैं
दिलावर अली आज़र
ग़ज़ल
इलाही ज़िंदगी यूँही मोहब्बत में गुज़र जाए
नमाज़-ए-फ़ज्र पढ़ कर ये दुआ करते थे हम दोनों
हसन अब्बासी
ग़ज़ल
हमारे मय-कदे में आख़िर-ए-शब का समाँ देखो
नमाज़-ए-फ़ज्र है और हैं नशे में धुत ख़ुदा और हम
फ़रहत एहसास
ग़ज़ल
सोते हैं वो कनार-ए-अदू में तमाम रात
मिस्ल-ए-अज़ान-ए-सुब्ह यहाँ है फ़ुग़ाँ अबस