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ग़ज़ल
सच अच्छा पर उस के जिलौ में ज़हर का है इक प्याला भी
पागल हो क्यूँ नाहक़ को सुक़रात बनो ख़ामोश रहो
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
है मिरा नाम-ए-अर्जुमंद तेरा हिसार-ए-सर-बुलंद
बानो-ए-शहर-ए-जिस्म-ओ-जाँ शाम-ब-ख़ैर शब-ब-ख़ैर
जौन एलिया
ग़ज़ल
क़मर जलालवी
ग़ज़ल
ज़िंदगी के सारे मौसम आ के रुख़्सत हो गए
मेरी आँखों में कहीं बरसात बाक़ी रह गई
अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा
ग़ज़ल
ज़रा मुश्किल से समझेंगे हमारे तर्जुमाँ हम को
अभी दोहरा रही है ख़ुद हमारी दास्ताँ हम को
अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा
ग़ज़ल
हम कोई नादान नहीं कि बच्चों की सी बात करें
जीना कोई खेल नहीं है बैठो तुक की बात करें
अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा
ग़ज़ल
यूँही बैठे रहो बस दर्द-ए-दिल से बे-ख़बर हो कर
बनो क्यूँ चारागर तुम क्या करोगे चारागर हो कर