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ग़ज़ल
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
ब-हज़ार इश्वा-ए-जाँ-सिताँ वो फिर अपना जल्वा दिखा गए
अभी आग दिल की दबी न थी अभी ज़ख़्म दिल का भरा न था
बासित भोपाली
ग़ज़ल
ब-हज़ार दानिश-ओ-आगही मिरी मस्लहत है अभी यही
मैं 'सुरूर'-ए-रहरव-ए-शब सही मिरी दस्तरस में सहर भी है
सुरूर बाराबंकवी
ग़ज़ल
ब-हज़ार दानिश-ओ-आगही मिरी मस्लहत है अभी यही
मैं असीर-ए-ज़ुल्मत-ए-शब सही मिरी दस्तरस में सहर भी है
सुरूर बाराबंकवी
ग़ज़ल
ब-हज़ार कोशिश-ओ-जुस्तुजू मिरा ज़ख़्म-ए-दिल न हुआ रफ़ू
लगे लाख मरहम-ए-रंग-ओ-बू न भरा गया न सिया गया
मोहम्मद अमीर आज़म क़ुरैशी
ग़ज़ल
मिली जो मंज़िल-ए-इम्काँ ब-जुस्तुजू-ए-हज़ार
अजीब नश्शा सफ़र-दर-सफ़र तकान में था
नसीम मुज़फ्फ़रपुरी
ग़ज़ल
अगरचे दिल को ले साथ अपने आया अश्क मिरा
निगाह में तिरी हरगिज़ न भाया अश्क मिरा