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ग़ज़ल
मर कर ग़म-ए-हयात से शायद नजात हो
लेकिन वो क्या करे जो ब-क़ैद-ए-हयात हो
राजा अब्दुल ग़फ़ूर जौहर निज़ामी
ग़ज़ल
क़ैद-ए-हयात ओ बंद-ए-ग़म अस्ल में दोनों एक हैं
मौत से पहले आदमी ग़म से नजात पाए क्यूँ
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
अर्सा-ए-क़ैद-ए-हयात अब वहशियों पर तंग है
चार दीवार-ए-अनासिर मिल के ज़िंदाँ हो गईं
यगाना चंगेज़ी
ग़ज़ल
ब-क़ैद-ए-होश जो गुज़रे ब-क़ैद-ए-जाँ गुज़रे
वो क्या मक़ाम-ए-मोहब्बत से कामराँ गुज़रे