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ग़ज़ल
ज़बाँ से कुछ न कहना बावजूद-ए-ताब-ए-गोयाई
खुली आँखों से बस मंज़र ब मंज़र सोचते रहना
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
ग़ज़ल
नरेश एम. ए
ग़ज़ल
न समझ सकी जो दुनिया ये ज़बान-ए-बे-ज़बानी
तिरा चेहरा ख़ुद कहेगा मिरे क़त्ल की कहानी
अख़तर मुस्लिमी
ग़ज़ल
ज़बान-ए-ख़ल्क़ का शायद न तुम को ए'तिबार आए
ख़ुद अपना हाल दीवाना कहेगा तुम भी सुन लेना
मुनव्वर लखनवी
ग़ज़ल
जहाँ में है ज़बान-ए-ख़ल्क़ पर हर-दम बुत-ए-ख़ुद-सर
जफ़ा तेरी वफ़ा मेरी सितम तेरा फ़ुग़ाँ मेरी
सय्यद अनीसुद्दीन अहमद रीज़वी अमरोहवी
ग़ज़ल
कैफ़-ए-नाक़ूस-ओ-अज़ाँ बोल उठे लफ़्ज़ों में
विर्द-ए-हक़ हो ब-ज़बाँ एक ग़ज़ल हो जाए