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ग़ज़ल
भला हम मिले भी तो क्या मिले वही दूरियाँ वही फ़ासले
न कभी हमारे क़दम बढ़े न कभी तुम्हारी झिजक गई
बशीर बद्र
ग़ज़ल
उस की याद की बाद-ए-सबा में और तो क्या होता होगा
यूँही मेरे बाल हैं बिखरे और बिखर जाते होंगे
जौन एलिया
ग़ज़ल
बढ़े जो हब्स तो शाख़ें हिला देना कि अब हम को
हवा के साथ जीना है हवा के साथ मरना है
अब्बास ताबिश
ग़ज़ल
जिधर महसूस हो ख़ुशबू उसी जानिब बढ़े जाओ
अँधेरी रात में रस्तों का अंदाज़ा नहीं होता
मुज़फ़्फ़र रज़्मी
ग़ज़ल
दिल ने देखा है बिसात-ए-क़ुव्वत-ए-इदराक को
क्या बढ़े इस बज़्म में आँखें उठाने के लिए