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ग़ज़ल
ये दुनिया जिस की ख़ातिर भागता फिरता है ये इंसाँ
तो फिर क्यों बत्न-ए-मादर से ब-चश्म-ए-नम निकलता है
तौक़ीर ज़ैदी
ग़ज़ल
माल भी अक्सर हो जाता है जान का लोगों की जंजाल
बत्न-ए-सदफ से लाल-ओ-गुहर तक एक कहानी बीच में है
बर्क़ी आज़मी
ग़ज़ल
परवरिश होती है बच्चे की ये उस की शान है
किस ने देखा बत्न-ए-मादर में ग़िज़ा देते हुए