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ग़ज़ल
औरों जैसे हो कर भी हम बा-इज़्ज़त हैं बस्ती में
कुछ लोगों का सीधा-पन है कुछ अपनी अय्यारी है
निदा फ़ाज़ली
ग़ज़ल
बाज़ औक़ात फ़राग़त में इक ऐसा लम्हा आता है
जिस में हम ऐसों को अच्छा-ख़ासा रोना आता है
वसीम ताशिफ़
ग़ज़ल
अब के बरस दस्तूर-ए-सितम में क्या क्या बाब ईज़ाद हुए
जो क़ातिल थे मक़्तूल हुए जो सैद थे अब सय्याद हुए
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
हुकूमत है न शौकत है न 'इज़्ज़त है न दौलत है
हमारे पास अब ले दे के बाक़ी बस सक़ाफ़त है
ख़्वाजा ग़ुलामुस्सय्यदैन रब्बानी
ग़ज़ल
हुकूमत है न शौकत है न इज़्ज़त है न दौलत है
हमारे पास अब ले-दे के बाक़ी बस सक़ाफ़त है
ख़्वाजा रब्बानी
ग़ज़ल
कहाँ के नाम ओ नसब इल्म क्या फ़ज़ीलत क्या
जहान-ए-रिज़्क़ में तौक़ीर-ए-अहल-ए-हाजत क्या
इफ़्तिख़ार आरिफ़
ग़ज़ल
किस को मालूम हुई इज़्ज़त-ओ-शान-ए-बुलबुल
कौन है गुल के सिवा मर्तबा-दान-ए-बुलबुल
शाह अकबर दानापुरी
ग़ज़ल
मुझ को इस तल्ख़-नवाई ने किया है रुस्वा
अपनी नज़रों में ब-हर-हाल है इज़्ज़त अपनी