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ग़ज़ल
सज्दों की दाद मिल गई बाब-ए-क़ुबूल से
माना नज़र के सामने वो आस्ताँ न था
मिर्ज़ा अल्ताफ़ हुसैन आलिम लखनवी
ग़ज़ल
'साबिर' वो कम-नसीब हूँ हिज्र में गर उठाऊँ हाथ
बाब-ए-क़ुबूल से रहे मेरी दुआ अलग अलग
फ़ज़ल हुसैन साबिर
ग़ज़ल
'सद्र' वो कम-नसीब हूँ हिज्र में गर उठाऊँ हाथ
बाब-ए-क़ुबूल से रहे मेरी दुआ अलग अलग
नवाब सद्र महल सद्र
ग़ज़ल
पहुँचें दुआएँ बाब-ए-हरीम-ए-क़ुबूल तक
तासीर ये किसी दिल-ए-दर्द-आश्ना की है
रसूल जहाँ बेगम मख़फ़ी बदायूनी
ग़ज़ल
बाब-ए-क़ुबूल-ए-मुद्दआ' दाई-ए-ख़ैर है तिरा
हो दिल-ए-शब में नाला-कश ऐ दिल-ए-बेक़रार-ए-शब
पंडित जवाहर नाथ साक़ी
ग़ज़ल
पोशीदा लफ़्ज़ लफ़्ज़ में है दास्तान-ए-कर्ब
'क़ुदसी' किताब-ए-ज़ीस्त का हर बाब देखना
औलाद-ए-रसूल क़ुद्सी
ग़ज़ल
हुस्न के बाब में 'अकबर' की सनद काफ़ी है
हम भी हर इक बुत-ए-कमसिन को परी कहते हैं