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ग़ज़ल
चश्म-ए-ख़ामोश की बाबत मुझे मा'लूम न था
ये भी है हर्फ़-ओ-हिकायत मुझे मा'लूम न था
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
इस से उस से मेरी बाबत रोज़ाना सरगोशी यानी
बनते क्यूँ हो मेरी हालत तुम को भी मालूम रही है