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ग़ज़ल
इसहाक़ नाशाद
ग़ज़ल
जिस का अमल है बे-ग़रज़ उस की जज़ा कुछ और है
हूर ओ ख़ियाम से गुज़र बादा-ओ-जाम से गुज़र
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
बादा-ओ-जाम की तरफ़ उस की नज़र उठेगी क्या
जिस को सुरूर मुस्तक़िल तेरी निगाह-ए-नाज़ दे
शिवराज बहार
ग़ज़ल
जिस को यक़ीं बक़ा का हो वाइ'ज़ तिरी सुने
हम लोग मस्त बादा-ए-जाम-ए-फ़ना के हैं
अब्दुल्ल्ला ख़ाँ महर लखनवी
ग़ज़ल
रोज़-ए-अलस्त से हूँ मैं सरशार वाइ'ज़ो
क्यों हो न मुझ को बादा-ओ-जाम-ओ-सुबू पसंद
नवाब उमराव बहादूर दिलेर
ग़ज़ल
सबीन यूनुस
ग़ज़ल
जो तिरी निगाह-ए-करम उठी तो फ़ज़ा के रंग बदल गए
कि बग़ैर बादा-ओ-जाम भी कई दौर बज़्म में चल गए