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ग़ज़ल
अभी बादबान को तह रखो अभी मुज़्तरिब है रुख़-ए-हवा
किसी रास्ते में है मुंतज़िर वो सुकूँ जो आ के चला गया
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
मुझे कल अचानक ख़याल आ गया आसमाँ खो न जाए
समुंदर को सर करते करते कहीं बादबाँ खो न जाए