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ग़ज़ल
ग़म-ए-दुनिया भी ग़म-ए-यार में शामिल कर लो
नश्शा बढ़ता है शराबें जो शराबों में मिलें
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
उस की याद की बाद-ए-सबा में और तो क्या होता होगा
यूँही मेरे बाल हैं बिखरे और बिखर जाते होंगे
जौन एलिया
ग़ज़ल
मन बै-रागी तन अनुरागी क़दम क़दम दुश्वारी है
जीवन जीना सहल न जानो बहुत बड़ी फ़नकारी है
निदा फ़ाज़ली
ग़ज़ल
मैं ने अपना हक़ माँगा था वो नाहक़ ही रूठ गया
बस इतनी सी बात हुई थी साथ हमारा छूट गया
दीप्ति मिश्रा
ग़ज़ल
ये जो लोग बनों में फिरते जोगी बै-रागी कहलाएँ
उन के हाथ अदब से चूमें उन के आगे सीस नवाएँ
अज़ीज़ हामिद मदनी
ग़ज़ल
न होगा दावर-ए-महशर के आगे हश्र में भी
कि उम्र भर उसी काफ़िर को मैं ने प्यार किया