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ग़ज़ल
दिखाती है कभी भाला कभी बरछी लगाती है
निगाह-ए-नाज़-ए-जानाँ हम को क्या क्या आज़माती है
आसी ग़ाज़ीपुरी
ग़ज़ल
गोया फ़क़ीर मोहम्मद
ग़ज़ल
कन-अँखियों की निगह गुपती इशारत क़हर चितवन के
जो वूँ देखा तो बर्छी है जो यूँ देखा तो भाला है
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
इतना ही मुझे इल्म है कुछ मैं हूँ बहर-चीज़
मा'लूम नहीं ख़ूब मुझे भी कि मैं क्या हूँ
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
पियाँ के नाँव आशिक़ कूँ क़त्ल अजब देखे
न बर्छी है न कर्छी है न ख़ंजर है न भाला है
पंडित चंद्र भान बरहमन
ग़ज़ल
बर्छी की तरह दिल में खटकती हैं अदाएँ
अंदाज़ जो क़ातिल दम-ए-रफ़्तार है तेरा