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ग़ज़ल
ये सर्द रातें भी बन कर अभी धुआँ उड़ जाएँ
वो इक लिहाफ़ मैं ओढूँ तो सर्दियाँ उड़ जाएँ
राहत इंदौरी
ग़ज़ल
'जलील' उस की तलब से बाज़ रहना सख़्त ग़फ़लत है
ग़नीमत जानिए उस को कि वो मुश्किल से मिलता है