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ग़ज़ल
तू सच कह रंग पाँ है ये कि ख़ून इश्क़-बाज़ाँ है
सुख़न रखते हैं कितने शख़्स तेरे लब की लाली में
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
बज़ाँ कर देख मुख धुन का दवानी हो बहाने सूँ
किए सब ख़ुश-नवेसाँ सट क़लम लिख नईं न सक मिसरा
क़ुली क़ुतुब शाह
ग़ज़ल
इश्क़-बाज़ाँ के तईं 'इश्क़ में तेरे ऐ यार
मस्जिद-ओ-मदरसा-ओ-दैर-ओ-हरम चारों एक
क़ासिम अली ख़ान अफ़रीदी
ग़ज़ल
दिल भी ले कर अलम-ए-आह मुक़ाबिल पहुँचा
नेज़ा-बाज़ान-ए-मिज़ा जब ब-तग़ाफ़ुल पहुँचे
अब्दुल रहमान एहसान देहलवी
ग़ज़ल
संग-ओ-सलीब हैं मैदाँ मैदाँ और हुजूम-ए-जाँ-बाज़ाँ
कैसी धूम से आया अब के मर्ग-ए-तमन्ना का त्यौहार
हमीद नसीम
ग़ज़ल
परी-रूयान-ए-गुलशन सूँ ले आई सीम-ओ-ज़र नर्गिस
नज़र-बाज़ाँ बजा गिनते हैं उस कूँ मालदारों में