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ग़ज़ल
ये सोच सोच के बिस्मिल पे क्या गुज़रती है
कि दस्त-ओ-बाज़ू-ए-क़ातिल पे क्या गुज़रती है
शादाँ इंदौरी
ग़ज़ल
तेग़ बे-आब है ने बाज़ु-ए-क़ातिल कमज़ोर
कुछ गिराँ-जानी है कुछ मौत ने फ़ुर्सत दी है
हैदर अली आतिश
ग़ज़ल
चल के पूछें तो ज़रा बाज़ू-ए-क़ातिल का हाल
ले के वो निकले हैं तलवार ख़ुदा ख़ैर करे
हाजी शफ़ीउल्लाह शफ़ी बहराइची
ग़ज़ल
दस्त-ए-ईसा भी वही बाज़ू-ए-क़ातिल भी वही
कितना नाज़ुक है चराग़ों से हवा का रिश्ता
ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ
ग़ज़ल
इक गर्दन-ए-मख़्लूक़ जो हर हाल में ख़म है
इक बाज़ू-ए-क़ातिल है कि ख़ूँ-रेज़ बहुत है
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
शोर-ए-तहसीन से हैं ख़ल्क़ के चेहरे रौशन
सुर्ख़-रू बाज़ू-ए-क़ातिल है कि तलवार कि हम
मसूद क़ुरैशी
ग़ज़ल
इस जहान ख़ैर-ओ-शर से बद-गुमाँ क्यूँ हो कोई
बाज़ू-ए-क़ातिल से 'नामी' दस्त-ए-ईसा कम नहीं