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ग़ज़ल
उस के ही बाज़ुओं में और उस को ही सोचते रहे
जिस्म की ख़्वाहिशों पे थे रूह के और जाल भी
परवीन शाकिर
ग़ज़ल
मिरे बाज़ुओं में थकी थकी अभी महव-ए-ख़्वाब है चाँदनी
न उठे सितारों की पालकी अभी आहटों का गुज़र न हो
बशीर बद्र
ग़ज़ल
मुझ को ये होश ही न था तू मिरे बाज़ुओं में है
या'नी तुझे अभी तलक मैं ने रिहा नहीं किया
जौन एलिया
ग़ज़ल
यारो कुछ तो ज़िक्र करो तुम उस की क़यामत बाँहों का
वो जो सिमटते होंगे उन में वो तो मर जाते होंगे
जौन एलिया
ग़ज़ल
मिरे बाज़ुओं में आ कर तिरा दर्द चैन पाए
तिरे गेसुओं मैं छुप कर मैं जहाँ के ग़म भुला दूँ
साहिर लुधियानवी
ग़ज़ल
सजाए बाज़ुओं पर बाज़ू वो मैदाँ में तन्हा था
चमकती थी ये बस्ती धूप में ताराज ओ ग़ारत सी
बशीर बद्र
ग़ज़ल
मिरी जंग की वही जीत थी मिरी फ़त्ह का वही जश्न था
मैं गिरा तो दौड़ के यार ने मुझे बाज़ुओं में उठा लिया
शाहबाज़ नय्यर
ग़ज़ल
मेरे बिस्तर तक अभी आई है वो ख़ुशबू-ए-ख़्वाब
रफ़्ता रफ़्ता बाज़ुओं में भी बदन भर आएगी
राजेन्द्र मनचंदा बानी
ग़ज़ल
है जिन के बाज़ुओं में दम वो दरिया पार कर लेंगे
बहुत मुमकिन है डूबें वो जो बैठे हैं सफ़ीने में