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ग़ज़ल
न गँवाओ नावक-ए-नीम-कश दिल-ए-रेज़ा-रेज़ा गँवा दिया
जो बचे हैं संग समेट लो तन-ए-दाग़-दाग़ लुटा दिया
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
जब कहा मैं ने कि मर मर के बचे हिज्र में हम
हँस के बोले तुम्हें जीना था तो मर क्यूँ न गए
मुज़्तर ख़ैराबादी
ग़ज़ल
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
कुछ नहीं खुलता किस की ज़द में ये हस्ती-ए-गुरेज़ाँ है
हम जो इतने बचे फिरते हैं किन तीरों के निशाने हैं
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
बचे किस तरह से मरीज़-ए-ग़म न तुम आ सको न बुला सको
यही हालतें हैं तो देखना कोई दम में क़िस्सा तमाम है
बेदम शाह वारसी
ग़ज़ल
हम लुत्फ़-ए-सैर-ए-बाग़-ए-जहाँ ख़ाक उड़ा चले
शौक़-ए-विसाल दिल में लिए यार का चले