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ग़ज़ल
शाकी बद-ज़न आज़ुर्दा हैं मुझ से मेरे भाई यार
जाने किस जा भूल आया हूँ रख कर मैं गोयाई यार
शमीम अब्बास
ग़ज़ल
बद-ज़न हैं अहल-ए-काबा मुझ दैर-आश्ना से
कहते हैं मुझ को काफ़िर फ़रियाद है ख़ुदा से
मुबारक अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
इश्क़ रूठा है कभी हुस्न से बद-ज़न हो कर
दाग़-ए-दिल और भड़क उठते हैं रौशन हो कर
जिया लाल दत्त रफ़ीक़
ग़ज़ल
कुछ हर बद-ज़न कुछ वो बद-ज़न दोषी अब किस को ठहराएँ
उल्टी-सीधी बात की पच पर याराने बदनाम हुए
मुज़फ़्फ़र शिकोह
ग़ज़ल
दिल-ए-बद-ज़न की ये मुझ पर करम-फ़रमाइयाँ तौबा
जहाँ तक मैं नहीं पहुँचा वहाँ तक बात जा पहुँची
सोज़ सिकन्दरपुरी
ग़ज़ल
जो लिखता हूँ कभी मज़मून-ए-राहत यार-ए-बद-ज़न को
दिखा कर आँख क्या क्या घूरता है ऐन उसरत का
मुंशी खैराती लाल शगुफ़्ता
ग़ज़ल
करती रहीं इंसान को इंसान से बद-ज़न
तहज़ीब-ए-नौ ये तेरी ख़ुराफ़ात अभी तक