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ग़ज़ल
डरे क्यूँ मेरा क़ातिल क्या रहेगा उस की गर्दन पर
वो ख़ूँ जो चश्म-ए-तर से उम्र भर यूँ दम-ब-दम निकले
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
हुए इत्तिफ़ाक़ से गर बहम तो वफ़ा जताने को दम-ब-दम
गिला-ए-मलामत-ए-अक़रिबा तुम्हें याद हो कि न याद हो
मोमिन ख़ाँ मोमिन
ग़ज़ल
लम्हा-ब-लम्हा दम-ब-दम आन-ब-आन रम-ब-रम
मैं भी गुज़िश्तगाँ में हूँ तू भी गुज़िश्तगाँ में है
जौन एलिया
ग़ज़ल
इश्क़ से पैदा नवा-ए-ज़िंदगी में ज़ेर-ओ-बम
इश्क़ से मिट्टी की तस्वीरों में सोज़-ए-दम-ब-दम
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
बढ़ रहा है दम-ब-दम सुब्ह-ए-हक़ीक़त का यक़ीं
हर नफ़स पर ये गुमाँ होता है मंज़िल आ गई
हफ़ीज़ होशियारपुरी
ग़ज़ल
शौक़ है उस को भी तर्ज़-ए-नाला-ए-उश्शाक़ से
दम-ब-दम छेड़े है मुँह से दूद-ए-क़ुल्याँ छोड़ कर