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ग़ज़ल
'कँवल' ए'ज़ाज़ भी कहती है इस को जुर्म भी दुनिया
कि बदनाम-ए-ज़माना भी मोहब्बत मो'तबर भी है
कँवल मलिक
ग़ज़ल
तू ही तन्हा नहीं बदनाम-ए-ज़माना ऐ दोस्त
बेवफ़ा तेरी तरह नौ-ए-बशर है कि नहीं
मंसूरुद्दीन कुरैशी मंसूर
ग़ज़ल
मैं हूँ इक बदनाम-ए-ज़माना देखो मेरे साथ न आओ
हो जाओगे मुफ़्त में रुस्वा क्यों नादानी करते हो
ताबिश रिहान
ग़ज़ल
उन से बहार ओ बाग़ की बातें कर के जी को दुखाना क्या
जिन को एक ज़माना गुज़रा कुंज-ए-क़फ़स में राम हुए
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
ख़ार-ओ-ख़स-ओ-ख़ाशाक तो जानें एक तुझी को ख़बर न मिले
ऐ गुल-ए-ख़ूबी हम तो अबस बदनाम हुए गुलज़ार के बीच
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
आज भी हैं वो सुलगे सुलगे तेरे लब ओ आरिज़ की तरह
जिन ज़ख़्मों पर पंखा झलते एक ज़माना बीत गया
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
ग़ज़ल
बुलबुलों से नहीं गुलज़ार-ए-ज़माना ख़ाली
शुक्र है याँ भी हम-आवाज़ नज़र आते हैं
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
'बेबाक' मिटा सकता नहीं हम को ज़माना
हम हक़ के लिए बर-सर-ए-पैकार रहे हैं
शान-ए-हैदर बेबाक अमरोहवी
ग़ज़ल
फ़ी-ज़माना है यही मस्लहत-ए-अक़्ल-ओ-शुऊर
दिल में ख़्वाहिश कोई उभरे तो दबा ली जाए