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ग़ज़ल
कुछ जाएज़ा तो लीजिए अपने बयान का
तुम से तो मेरे दोस्त त'अल्लुक़ है मान का
मोहम्मद मुस्तहसन जामी
ग़ज़ल
सोज़ से साज़ ही नहीं हाल है कुछ 'अजब तिरा
मैं तो नियाज़-मंद हूँ नाज़ है बे-सबब तिरा
मुनव्वर लखनवी
ग़ज़ल
धुएँ में डूबे हैं फूल तारे चराग़ जुगनू चिनार कैसे
नई रुतों के उड़न खटोलों पे आ रहे हैं सवार कैसे
अतहर सलीमी
ग़ज़ल
बजा कि दुश्मन-ए-जाँ शहर-ए-जाँ के बाहर है
मगर मैं उस को कहूँ क्या जो घर के अंदर है
अख़्तर होशियारपुरी
ग़ज़ल
मायूसी की कैफ़िय्यत जब दिल पर तारी हो जाती है
रफ़्ता रफ़्ता दीन-ओ-दुनिया से बे-ज़ारी हो जाती है
काशिफ़ रफ़ीक़
ग़ज़ल
रात-दिन लब पे न हो क्यूँकि बयान-ए-देहली
न मकीं अब वो रहे और न मकान-ए-देहली