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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

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नोक-ए-ख़ंजर पे सजे सर नहीं देखे जाते

अज़ीज़ बघरवी

नोक-ए-ख़ंजर पे सजे सर नहीं देखे जाते

अज़ीज़ बघरवी

MORE BYअज़ीज़ बघरवी

    नोक-ए-ख़ंजर पे सजे सर नहीं देखे जाते

    ख़ूँ-चकाँ रोज़ के मंज़र नहीं देखे जाते

    ज़ुल्म वालों के मकाँ हों कि वो मज़लूमों के

    हम से बस्ती के जले घर नहीं देखे जाते

    मस्लहत-कोश नहीं हक़ के तरफ़-दार हैं हम

    फ़र्ज़ के सामने पत्थर नहीं देखे जाते

    हद से बढ़ जाए अगर नश्शा-ए-बेदाद-गरी

    अपने बेगानों के फिर सर नहीं देखे जाते

    हो खुला हाथ नज़र आएँ लकीरें उस की

    बंद मुट्ठी में मुक़द्दर नहीं देखे जाते

    रंग तस्वीर के अंदर ही भले लगते हैं

    रंग तस्वीर के बाहर नहीं देखे जाते

    अब फ़क़त चेहरों पे रहती है ज़माने की नज़र

    अब किसी शख़्स के जौहर नहीं देखे जाते

    हर्फ़-ए-हक़ आज भी है अहल-ए-वफ़ा के लब पर

    आज वो दार-ओ-रसन पर नहीं देखे जाते

    दामन-ए-अहल-ए-हुनर में नहीं क्या चीज़ 'अज़ीज़'

    फिक्र-ओ-एहसास के गौहर नहीं देखे जाते

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