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ग़ज़ल
तू अपने पिंदार की ख़बर ले कि रुख़ हवा का बदल रहा है
तिरी नज़र से बहकने वाला फ़रेब खा कर सँभल रहा है
मुग़ीसुद्दीन फ़रीदी
ग़ज़ल
मुझे पी कर बहकने में बहुत ही लुत्फ़ आता है
न तुम देखोगे तो फिर मुझ को फ़रहाँ कौन देखेगा
अज़ीज़ वारसी
ग़ज़ल
उस ने भी ख़्वाहिशों को बहकने नहीं दिया
मैं भी जुनून-ए-इश्क़ में अंधा नहीं हुआ
मशकूर ममनून क़न्नौजी
ग़ज़ल
जाने उस शब क्या हुआ था मेरी अक़्ल-ओ-होश को
ख़ुद बहकने लग गया था उस को समझाते हुए
दिनेश कुमार द्रौण
ग़ज़ल
वो भी था मौज में ये दिल भी बहकने ही को था
अपने हाथों ने हया की तो तुम्हारे लिए की