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ग़ज़ल
दर-ए-पीर-ए-मुग़ाँ छोड़ें ये हम से हो नहीं सकता
कोई वाइज़ से कह दो तेरे बहकाने से क्या होगा
इम्तियाज़ अली अर्शी
ग़ज़ल
किसे हम दोस्त समझें इस जहाँ में और किसे दुश्मन
कि जो समझाने वाले हैं वही बहकाने वाले हैं
सरदार गंडा सिंह मशरिक़ी
ग़ज़ल
मैं मजबूर अकेला राही लेकिन राहबर इतने हैं
किस किस की अगवाही मानूँ किस किस को बहकाने दूँ
विश्वनाथ दर्द
ग़ज़ल
ये ख़याल-ए-शौक़-परवर दिल के बहलाने को है
कोई बे-रुख़ बे-रुख़ी से बाज़ आ जाने को है
अब्दुल करीम मजरूह सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
जादा-ए-हक़ पर रहेंगे गामज़न हम तो 'निशात'
राह में बहकाने हम को राहबर आया तो क्या
मर्दान अली खां निशात
ग़ज़ल
नासेहा मैं भी कुछ ऐसा नहीं नादान कि बस
छोड़ दूँ राह-ए-मोहब्बत तिरे बहकाने से
मोहम्मद लुतफ़ुद्दीन ख़ान लुत्फ़
ग़ज़ल
मुझ पर वो बे-तौर ख़फ़ा हैं ग़ैरों के बहकाने से
मिलना कैसा बात कहाँ की बंद है आना जाना भी
हबीब मूसवी
ग़ज़ल
हों बहाना तुझे आँसू तो सलीक़े से बहा
ऐसे नायाब गुहर मुफ़्त में बर्बाद न कर
असद अहमद मुजद्ददी असद
ग़ज़ल
कट नहीं पाई किसी सूरत भी दीवानों की बात
आए ख़ुद बहके हुए जो उन को बहकाने गए