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ग़ज़ल
न मेरी बात ही समझा न मेरा मुद्दआ' समझा
सुना क़िस्सा मगर क्या जाने उस ज़ालिम ने क्या समझा
अनवारुल हक़ अहमर लखनवी
ग़ज़ल
सौ बार चमन महका सौ बार बहार आई
दुनिया की वही रौनक़ दिल की वही तन्हाई
सूफ़ी ग़ुलाम मुस्ताफ़ा तबस्सुम
ग़ज़ल
आब-ओ-दाना तिरा ऐ बुलबुल-ए-ज़ार उठता है
फ़स्ल-ए-गुल जाती है सामान-ए-बहार उठता है
मुबारक अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
जब दिल में तिरे ग़म ने हसरत की बिना डाली
दुनिया मिरी राहत की क़िस्मत ने मिटा डाली
फ़ानी बदायुनी
ग़ज़ल
बहस उस की मेरी वक़्त-ए-मुलाक़ात बढ़ गई
बातें हुईं कुछ ऐसी कि बस बात बढ़ गई
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
इस गुलशन-ए-पुर-ख़ार से मानिंद-ए-सबा भाग
वहशत यही कहती है कि ज़ंजीर तुड़ा भाग
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
मुसहफ़-ए-रुख़ का तुम्हारे जो सना-ख़्वाँ होता
दिल-ए-बेताब मिरा हाफ़िज़-ए-क़ुर्आं होता
हाशिम अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
तिरे शिकवों से जौर-ए-आसमाँ तक बात आ पहुँची
कहाँ से इब्तिदा की थी कहाँ तक बात आ पहुँची