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ग़ज़ल
हम शिकस्ता-दिल न बहरा-मंद दुनिया से हुए
वर्ना इस आलूदगी से किस का दामन पाक था
मुहम्मद याक़ूब आमिर
ग़ज़ल
दुख को सम्त-शनासाई दी ग़म के क़ुर्बत-दारों ने
दिल धारा दरिया मिल कर बहरा-मंद हुआ