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ग़ज़ल
नीम की छाँव में बैठने वाले सभी के सेवक होते हैं
कोई नाग भी आ निकले तो उस को दूध पिला देना
रईस फ़रोग़
ग़ज़ल
रहम खा कर 'अर्श' उस ने इस तरफ़ देखा मगर
ये भी दिल दे बैठने का मुझ को ख़म्याज़ा लगा
अर्श सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
फिर बैठने का मुझ को मज़ा ही नहीं उठता
जब तक कि तिरे शाने से शाना नहीं मिलता