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ग़ज़ल
उस की याद की बाद-ए-सबा में और तो क्या होता होगा
यूँही मेरे बाल हैं बिखरे और बिखर जाते होंगे
जौन एलिया
ग़ज़ल
वक़्त ने ऐसे घुमाए उफ़ुक़ आफ़ाक़ कि बस
मेहवर-ए-गर्दिश-ए-सफ़्फ़ाक से ख़ौफ़ आता है
इफ़्तिख़ार आरिफ़
ग़ज़ल
बर्क़ भी गिरती है अक्सर ख़िर्मन भी जलते हैं मगर
अपने हाथों ख़िर्मन को आग लगाना सहल नहीं
मेला राम वफ़ा
ग़ज़ल
इक़बाल अज़ीम
ग़ज़ल
डरे क्यूँ मेरा क़ातिल क्या रहेगा उस की गर्दन पर
वो ख़ूँ जो चश्म-ए-तर से उम्र भर यूँ दम-ब-दम निकले