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ग़ज़ल
बद कहा मैं ने रक़ीबों को तो तक़्सीर हुई
क्यूँ है बख़्शो भी भला सब में बुरा मैं ही हूँ
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
गुनह बख़्शो रसाई दो 'रसा' को अपने क़दमों तक
बुरा है या भला है जैसा है प्यारे तुम्हारा है
भारतेंदु हरिश्चंद्र
ग़ज़ल
सैर-ए-गुलशन को अगर जाते हो हमराह-ए-रक़ीब
बख़्शो मेरे तईं मुझ को न बुलाओ जाओ
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
या दिल-ओ-दीदा को तनवीर-ए-मोहब्बत बख़्शो
या दम-ए-सुब्ह ज़माने में उजाला न करो
अख़्तर होशियारपुरी
ग़ज़ल
जान बख़्शो सर मिरे लाशे का ठुकराओ कभी
साग़र-ए-ख़ाली में भर दो शहद-ए-हस्ती एक दिन
मुनीर शिकोहाबादी
ग़ज़ल
मज़ाक़-ए-दीद बख़्शा तो शुऊ'र-ए-दीद भी बख़्शो
तुम्हें देखूँगा मैं कैसे नज़र ऐसी कहाँ मेरी
माहिर क़ुरैशी बरेलवी
ग़ज़ल
मुझ को चाहा है तो बख़्शो मिरी चाहत को दवाम
बन के रह जाना ढली रात का अफ़्साना मत
एम कोठियावी राही
ग़ज़ल
मैं ने कहा कि बख़्शो मियाँ लो ख़ुदा का नाम
अच्छे हो तुम भी रोज़ हो लेकिन हज़ार-हैफ़
क़द्र औरंगाबादी
ग़ज़ल
कहीं और बाँट दे शोहरतें कहीं और बख़्श दे इज़्ज़तें
मिरे पास है मिरा आईना मैं कभी न गर्द-ओ-ग़ुबार लूँ