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ग़ज़ल
बहादुर शाह ज़फ़र
ग़ज़ल
न फ़ना मिरी न बक़ा मिरी मुझे ऐ 'शकील' न ढूँढिए
मैं किसी का हुस्न-ए-ख़याल हूँ मिरा कुछ वजूद ओ अदम नहीं
शकील बदायूनी
ग़ज़ल
होवे इक क़तरा जो ज़हराब-ए-मोहब्बत का नसीब
ख़िज़्र फिर तो चश्मा-ए-आब-ए-बक़ा क्या चीज़ है
बहादुर शाह ज़फ़र
ग़ज़ल
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
तुम यूँ ही समझना कि फ़ना मेरे लिए है
पर ग़ैब से सामान-ए-बक़ा मेरे लिए है