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ग़ज़ल
सारे रिंद औबाश जहाँ के तुझ से सुजूद में रहते हैं
बाँके टेढ़े तिरछे तीखे सब का तुझ को इमाम किया
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
अमीर ख़ुसरो
ग़ज़ल
बहज़ाद लखनवी
ग़ज़ल
दाग़ दुनिया ने दिए ज़ख़्म ज़माने से मिले
हम को तोहफ़े ये तुम्हें दोस्त बनाने से मिले
कैफ़ भोपाली
ग़ज़ल
वो तिरी गली के तेवर, वो नज़र नज़र पे पहरे
वो मिरा किसी बहाने तुझे देखते गुज़रना