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ग़ज़ल
लगने न दे बस हो तो उस के गौहर-ए-गोश को बाले तक
उस को फ़लक चश्म-ए-मह-ओ-ख़ुर की पुतली का तारा जाने है
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
उस की याद की बाद-ए-सबा में और तो क्या होता होगा
यूँही मेरे बाल हैं बिखरे और बिखर जाते होंगे
जौन एलिया
ग़ज़ल
मैं अदम से भी परे हूँ वर्ना ग़ाफ़िल बार-हा
मेरी आह-ए-आतिशीं से बाल-ए-अन्क़ा जल गया
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
बा-रंग-ए-कागज़-ए-आतिश-ज़दा नैरंग-ए-बेताबी
हज़ार आईना दिल बाँधे है बाल-ए-यक-तपीदन पर
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
हवा-ए-पर-फ़िशानी बर्क़-ए-ख़िर्मन-हा-ए-ख़ातिर है
ब-बाल-ए-शोला-ए-बेताब है परवाना-ज़ार आतिश
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
ये छपके का जो बाला कान में अब तुम ने डाला है
इसी बाले की दौलत से तुम्हारा बोल-बाला है