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ग़ज़ल
कितने मौसम सरगर्दां थे मुझ से हाथ मिलाने में
मैं ने शायद देर लगा दी ख़ुद से बाहर आने में
अज़्म बहज़ाद
ग़ज़ल
ग़ज़ल को कम-निगाहों की पहुँच से दूर रखता हूँ
मुझे बंजर दिमाग़ों में शजर-कारी नहीं करनी
अफ़ज़ल ख़ान
ग़ज़ल
बीते लम्हे ध्यान में आ कर मुझ से सवाली होते हैं
तू ने किस बंजर मिट्टी में मन का अमृत डोल दिया
शकेब जलाली
ग़ज़ल
कि जिस दिल की ज़मीं बरसों से बंजर हो तो फिर उस पर
नई चाहत उगाने में ज़रा सी देर लगती है