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ग़ज़ल
क़स्र-ए-तन को यूँ ही बनवा ये बगूले 'नासिख़'
ख़ूब ही नक़्शा-ए-तामीर लिए फिरते हैं
इमाम बख़्श नासिख़
ग़ज़ल
जी चाहता है शौक़-ए-शहादत में क़ब्ल-ए-मर्ग
बनवा के क़ब्र-ए-लाला को उस पर लगाऊँ मैं
हैदर अली आतिश
ग़ज़ल
किस क़दर ख़ुश-फ़हम थे जो लोग अगले वक़्त में
मस्जिदें बनवा दिया करते थे बुतख़ानों के साथ
बिस्मिल सईदी
ग़ज़ल
कुछ खिड़कियाँ कुछ सेंक-चे फिर चार-छे दीवार भी
इन ख़ास चीज़ों से बना वो घर तिरा ये घर मिरा
धर्मेन्द्र तिजोरी वाले आज़ाद
ग़ज़ल
मैं वो काफ़िर हूँ नहीं मिलता कहीं जिस का जवाब
मैं ने मस्जिद अपनी बनवा ली सनम-ख़ाने के पास
सत्यपाल जाँबाज़
ग़ज़ल
वो हम को झोंपड़ी में चैन से रहने नहीं देते
वही जिन के लिए बनवा दिए दिल-कश महल हम ने