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ग़ज़ल
आकिफ़ ग़नी
ग़ज़ल
है करम उस का कि इंसाँ भी अज़ीमुश्शाँ हुआ
वर्ना थी क्या बात जो नूर-ए-ख़ुदा हैराँ हुआ
मोहम्मद फ़य्याज़ हसरत
ग़ज़ल
वाक़ि'आ माज़ी का है लगती है जैसे कल की बात
क्या बताऊँ कितनी गहरी थी वो दिल की वारदात
शम्सा नज्म
ग़ज़ल
कहाँ मुमकिन है पोशीदा ग़म-ए-दिल का असर होना
लबों का ख़ुश्क हो जाना भी है आँखों का तर होना