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ग़ज़ल
सूफ़िया दीपीका कौसर
ग़ज़ल
देखे शक्ल-ए-बर्क़-ए-आलम-ताब उस दिलदार की
है ये दीदा है ये जुरअत नर्गिस-ए-बीमार की
फ़ज़ल हुसैन साबिर
ग़ज़ल
तासीर-ए-बर्क़-ए-हुस्न जो उन के सुख़न में थी
इक लर्ज़िश-ए-ख़फ़ी मिरे सारे बदन में थी
हसरत मोहानी
ग़ज़ल
घर अपना वादी-ए-बर्क़-ओ-शरर में रक्खा जाए
तअ'ल्लुक़ात का सौदा न सर में रक्खा जाए
अमानुल्लाह ख़ालिद
ग़ज़ल
सूरत-ए-बर्क़-ए-तपाँ शो'ला-फ़गन उठ्ठे हैं
अज़्म-ए-नौ ले के जवानान-ए-वतन उठ्ठे हैं
मंशाउर्रहमान ख़ाँ मंशा
ग़ज़ल
मुझे ऐ हम-नफ़स अंदेशा-ए-बर्क़-ओ-ख़िज़ाँ क्यूँ हो
मिरी पर्वाज़ महदूद-ए-फ़ज़ा-ए-गुलसिताँ क्यूँ हो
मंज़ूर हुसैन शोर
ग़ज़ल
दिल-ए-ना-मुतमइन अंदेशा-ए-बर्क़-ए-तपाँ में है
जो बे-ताबी क़फ़स में थी वही अब आशियाँ में है
निहाल सेवहारवी
ग़ज़ल
ये आँखें मुद्दतों से ख़ूगर-ए-बर्क़-ए-तजल्ली हैं
नशेमन बिजलियों का है मिरा काशाना बरसों से
इक़बाल सुहैल
ग़ज़ल
ऐ बर्क़-ए-तजल्ली कौंध ज़रा क्या मुझ को भी मूसा समझा है
मैं तूर नहीं जो जल जाऊँ जो चाहे मुक़ाबिल आ जाए
बहज़ाद लखनवी
ग़ज़ल
कर दिए 'बर्क़'-ए-तजल्ली ने मगर हौसले पस्त
तुम को वल्लाह बड़ी दूर की सूझी थी कलीम