आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "be-abr"
ग़ज़ल के संबंधित परिणाम "be-abr"
ग़ज़ल
सहरा की बे-आब ज़मीं पर एक चमन तय्यार किया
अपने लहू से सींच के हम ने मिट्टी को गुलज़ार किया
शायर लखनवी
ग़ज़ल
किसी बंजर तख़य्युल पर किसी बे-आब रिश्ते में
ज़रा ठहरे तो पत्थर बन गए अहबाब रस्ते में