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ग़ज़ल
मुज़्दा ये सबा उस बुत-ए-बे-बाक को पहुँचा
ये दूद-ए-दिल-ए-सोख़्ता अफ़्लाक को पहुँचा
मिर्ज़ा मोहम्मद तक़ी हवस
ग़ज़ल
अश्क बेताब व निगह बे-बाक व चश्म-ए-तर ख़राब
चश्म-ए-बीना से अगर देखो तो घर का घर ख़राब
अनवर देहलवी
ग़ज़ल
इशरत-ए-जल्वा-ए-बे-बाक मुबारक ऐ इश्क़
दीदा-ओ-दिल हैं मगर तिश्ना-ए-पैग़ाम अभी