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ग़ज़ल
मज़ा बे-होशी-ए-उल्फ़त का होशयारों से मत पूछो
अज़ीज़ाँ ख़्वाब की लज़्ज़त को बे-दारों से मत पूछो
मीर हसन
ग़ज़ल
होश न था बे-होशी थी बे-होशी में फिर होश कहाँ
याद रही ख़ामोशी थी जो भूल गए अफ़्साना था
बेदम शाह वारसी
ग़ज़ल
याद हक़ की है ज़माने से फ़रामोशी है
होश का होश है बे-होशी की बे-होशी है
रंगेशवर दयाल सक्सेना सूफ़ी
ग़ज़ल
निगाह-ए-मस्त-ए-साक़ी में है क्या दारा-ए-बेहोशी
कि साग़र लग रहा है मुँह से और मय-ख़्वार सोते हैं
मारूफ़ देहलवी
ग़ज़ल
ग़फ़लत को जवानी की कुछ पूछो न ऐ ज़ाहिद
बे-होशी की लज़्ज़त को हुशियार न समझेगा