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ग़ज़ल
काम आख़िर जज़्बा-ए-बे-इख़्तियार आ ही गया
दिल कुछ इस सूरत से तड़पा उन को प्यार आ ही गया
जिगर मुरादाबादी
ग़ज़ल
चराग़ों के बुझाने को हवा बे-इख़्तियार आई
गुलाबों की महक बिखरी तो आवाज़-ए-शरार आई
जाज़िब क़ुरैशी
ग़ज़ल
तेरी नज़र के आगे मैं बे-इख़्तियार हूँ
जो भी हूँ जैसा भी हूँ मैं ही तेरा प्यार हूँ
हर्ष कुमार भटनागर
ग़ज़ल
प्यार उन को देख कर बे-इख़्तियार आ ही गया
वो जो आए दिल मिरा दीवाना-वार आ ही गया
जयकृष्ण चौधरी हबीब
ग़ज़ल
जवानी याद हम को अपनी फिर बे-इख़्तियार आई
हुआ दीवानों में जब ग़ुल बहार आई बहार आई
मिर्ज़ा मोहम्मद तक़ी हवस
ग़ज़ल
बे-इख़्तियार हम जो सर-ए-बज़्म रो दिए
कितने सुनहरे ख़्वाब इन आँखों ने खो दिए