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ग़ज़ल
किसी बे-कस के कासे में जो तू मक़्दूर हो जाए
गदा हो कर वो रश्क-ए-क़ैसर-ओ-मग़्फ़ूर हो जाए
इशरत हाफ़िज़ आबादी
ग़ज़ल
खुला है ग़ुंचा-ए-दिल हर ग़रीब-ओ-बे-कस का
नसीम कू-ए-मदीना जहाँ जहाँ गुज़री
तहनियतुन्निसा बेगम तहनियत
ग़ज़ल
हिक़ारत से जिसे ठुकरा दिया बरगश्ता शो'लों ने
वही परवाना-ए-बे-कस फ़रोग़-ए-शम-ए-महफ़िल था
शौकत थानवी
ग़ज़ल
बे-कस लम्हे आशुफ़्ता दिल और ये रंज-ओ-ग़म 'अंकित'
जब्र-ए-मशीयत हिज्र के मआ'नी ज़ाहिर करती जाती है
अथर्व अंकित
ग़ज़ल
आबरू शाह मुबारक
ग़ज़ल
बहुत ही इबरत-अंगेज़ और हसरत-ख़ेज़ मंज़र है
लहद पर एक बे-कस के किसी का नौहागर होना
सफ़दर मिर्ज़ापुरी
ग़ज़ल
दश्त-ए-वहशत में निपट बे-कस हूँ ऐ आहू-निगाह
हूँ भिकारी वस्ल का दे मुज कूँ इस मैदान दान