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ग़ज़ल
बे-कसों मासूम की मुश्किल-कुशाई कीजिए
छूटना चक्कर से है गर आसमान-ए-पीर के
जितेन्द्र मोहन सिन्हा रहबर
ग़ज़ल
ज़ि-बस-कि करते रहे बे-कसों पे तुम बेदाद
सदा गली में तुम्हारी दोहाइयाँ ही रहीं
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
'असद' ऐ बे-तहम्मुल अरबदा बे-जा है नासेह से
कि आख़िर बे-कसों का ज़ोर चलता है गरेबाँ पर
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
हमारी बे-कसी भी इक न इक दिन काम आ जाती
अगर 'बेख़ुद' कोई हम बे-कसों का भी ख़ुदा होता
अब्बास अली ख़ान बेखुद
ग़ज़ल
धुआँ जो बे-कसों की आह का उट्ठा तो ऐ 'जुम्बिश'
चमन वाले पुकार उट्ठे कि वो अब्र-ए-बहार आया
जुंबिश ख़ैराबादी
ग़ज़ल
फ़ारिग़ बुख़ारी
ग़ज़ल
मेरी दौलत देख कर क्यूँ तुम ने ठंडी साँस ली
बे-कसों पर रस्म-ए-आईन-ए-सितमगारी नहीं