aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "be-niyaaz"
वो बे-नियाज़-ए-दर्द-ओ-ग़म-ए-ज़िंदगी 'नियाज़'वो लोग बा-फ़राग़ हैं मेरी निगाह से
इक हम ही बे-नियाज़-ए-मसर्रत रहे 'नियाज़'राहत जहाँ में किस को फ़राहम नहीं हुई
उस हुस्न-ए-बे-नियाज़ के कुछ मर्तबे थे औरमेरी उदास रातों के बुझते दिए थे और
ऐ इश्क़-ए-बे-नियाज़ ये क्या इंक़िलाब हैग़म कामयाब है न ख़ुशी कामयाब है
बज़्म-ए-अहबाब में 'नियाज़' अक्सरक्यों किसी बे-हुनर की बात चली
इस शहर-ए-बे-नियाज़ के लोगों की ख़ू न पूछकिस किस अदा से करते हैं दिल का लहू न पूछ
जब तआ'रुफ़ से बे-नियाज़ था मैंकोई ज़ाहिद न 'सरफ़राज़' था मैं
वो बे-नियाज़ मुझे उलझनों में डाल गयाकि जिस के प्यार में एहसास-ए-माह-ओ-साल गया
बे-नियाज़ दहर कर देता है इश्क़बे-ज़रों को लाल-ओ-ज़र देता है इश्क़
बे-नियाज़ नग़्मा-ए-दुनिया हूँ मैंअपने दिल की धड़कनें सुनता हूँ मैं
ऐश से बे-नियाज़ हैं हम लोगबे-ख़ुद-ए-सोज़-ओ-साज़ हैं हम लोग
मोहब्बत बे-नियाज़-ए-मा-सिवा हैबड़े झगड़ों पे क़ाबू पा लिया है
बे-नियाज़-ए-हर-तमन्ना हो गयाइश्क़ में अब हुस्न पैदा हो गया
बे-नियाज़-ए-सुकून-ए-मंज़िल हैज़िंदगी इर्तिक़ा पे माइल है
बे-नियाज़-ए-शब-ए-तन्हाई हैआज बीमार को नींद आई है
कुशादा दस्त-ए-करम जब वो बे-नियाज़ करेनियाज़-मंद न क्यूँ आजिज़ी पे नाज़ करे
ग़ैरत की चिलमनों से आवाज़ आ रही हैमहव-ए-नियाज़-मंदी आ बे-नियाज़ हो जा
न होता दहर से जो बे-नियाज़ क्या करताखुला था मुझ पे कुछ ऐसा ही राज़ क्या करता
बे-नियाज़-ए-बहार सा क्यूँ हैदिल को ज़ख़्मों से प्यार सा क्यूँ है
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