आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "be-sabaati-e-dahr-e-KHaraab"
ग़ज़ल के संबंधित परिणाम "be-sabaati-e-dahr-e-KHaraab"
ग़ज़ल
रोता है बे-सबाती-ए-गुलज़ार-ए-दहर पर
ग़ुंचे के लब पे ग़ौर से देखो हँसी नहीं
मोहम्मद यूसुफ़ रासिख़
ग़ज़ल
वो डोल डालें किसी कार-ए-पाएदार का क्या
जो बे-सबाती-ए-उम्र-ए-रवाँ में रहते हैं
अब्दुल अज़ीज़ ख़ालिद
ग़ज़ल
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
बे-सबाती-ए-जहाँ पर कौन करता है यक़ीं
हम समझ कर भी न ये समझे कि ये अफ़्साना है