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ग़ज़ल
इसे वक़्त का जब्र कहिए कि बेचारगी जिस्म ओ जाँ की
मकाँ खोने वालों को डर है कि अब ला-मकाँ खो न जाए
अज़्म बहज़ाद
ग़ज़ल
मुझे मेरी अना के ख़ंजरों ने क़त्ल कर डाला
बहाना ये भी इक बेचारगी का था बहानों में
कफ़ील आज़र अमरोहवी
ग़ज़ल
मेरे शे'रों में तिरी बे-चारगी का दुख भी हो
काश जो तू सोचता है वो भी मैं लिक्खा करूँ
रियाज़ मजीद
ग़ज़ल
जोश मलसियानी
ग़ज़ल
दीदनी है अब शिकस्त-ए-ज़ब्त की बे-चारगी
मुस्कुराता हूँ मगर दिल दर्द से लबरेज़ है