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ग़ज़ल
सुब्ह-दम ग़ाएब हुए 'अंजुम' तो साबित हो गया
ख़ंदा-ए-बेहूदा पर तोड़े गए दंदान-ए-सुब्ह
पंडित दया शंकर नसीम लखनवी
ग़ज़ल
मैं ने बेहूदा तवक़्क़ो' की सज़ा पाई है
कुछ ख़याल आप मिरी हसरत-ए-दिल का न करें
वहशत रज़ा अली कलकत्वी
ग़ज़ल
कुछ है बेहूदा ओ नाक़िस तो 'अमानत' का कलाम
यूँ तो कहने को फ़न-ए-शेर में उस्ताद हैं सब
अमानत लखनवी
ग़ज़ल
कब किया दिल पे मिरे पंद-ओ-नसीहत ने असर
नासेह-ए-बेहूदा-गुफ़्तार की अफ़्वाहें हैं
मुस्तफ़ा ख़ाँ शेफ़्ता
ग़ज़ल
है वस्ल की ख़्वाहिश तुझे उस रश्क-ए-परी से
हैराँ हूँ मैं ऐ दिल तिरी बेहूदा-सरी से
रंजूर अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
ज़बाँ पे वा'ज़ है और दिल तिरा है इस्तिग़्लाज़
ब-वा'ज़-ए-बेहूदा मत बाँध तू कमर वाइ'ज़