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ग़ज़ल
तहज़ीब हाफ़ी
ग़ज़ल
इशक़-ए-पेचाँ की संदल पर जाने किस दिन बेल चढ़े
क्यारी में पानी ठहरा है दीवारों पर काई है
जौन एलिया
ग़ज़ल
तिरी याद आए तो चुप रहूँ ज़रा चुप रहूँ तो ग़ज़ल कहूँ
ये ‘अजीब आग की बेल थी मिरे तन-बदन से लिपट गई
बशीर बद्र
ग़ज़ल
उस की याद की बाद-ए-सबा में और तो क्या होता होगा
यूँही मेरे बाल हैं बिखरे और बिखर जाते होंगे
जौन एलिया
ग़ज़ल
तेज़ हवा की धार से कट कर क्या जाने कब गिर जाए
लहराती है शाख़-ए-तमन्ना कच्ची बेल चमेली सी